भारतीय समन्दर का फ्रांसीसी लड़ाका आईएनएस कलवरी
भारतीय समन्दर का फ्रांसीसी लड़ाका आईएनएस कलवरी
भारतीय नौसेना हिन्द महासागर में मिलने वाली सामरिक चुनौतियों से निपटने के लिए लगातार अपनी क्षमता में बढ़ोतरी कर रही है। इस क्षेत्र में भारत अपने पड़ोसियों और पारम्परिक प्रतिद्वंद्वियों से कहीं आगे निकल आया है। युद्धपोतों की लंबी श्रृंखला के बाद वह पनडुब्बियों के क्षेत्र में भी स्वयं को इक्कीस साबित करने जा रहा है। इसी क्रम में भारतीय नौसेना ने अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 75 को आगे बढ़ाते हुए इस श्रेणी की अपनी पहली पनडुब्बी कलवरी का जलावतरण करवा दिया। इस प्रोजेक्ट के तहत देश में बनाई गई यह पहली पनडुब्बी है। इसी क्रम में आने वाले समय में भारत स्काॅर्पीन श्रेणी की कुल 6 स्वदेशी पनडुब्बियां बनायेगा। कलवरी नाम रूस निर्मित उस पनडुब्बी के नाम से लिया गया है जो भारत द्वारा उपयोग में लाई गई पहली पनडुब्बी थी। इन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण मझगाँव डॉक्स लिमिटेड द्वारा फ्रांसीसी कम्पनी क्ब्छै के सहयोग से किया जा रहा है। इन पनडुब्बियों की विशेषता यह होगी कि यह विश्व की सबसे उन्नत पनडुब्बियों में से एक होंगी तथा अत्याधुनिक पोत-रोधी मिसाइल, दूर की मारक क्षमता वाली टॉरपीडो तथा अत्याधुनिक सेंसर प्रणाली लगाई जायेगी। “कलवरी” पनडुब्बी का जलावतरण समारोह मुम्बई में किया गया और अब इस पनडुब्बी का समुद्री परीक्षण करने के बाद इसे सितम्बर 2016 तक भारतीय नौसेना में शामिल किए जाने की योजना है। “प्रोजेक्ट 75″ के तहत कुल 6 स्कॉर्पीन पनडुब्बियों को वर्ष 2020 तक नौसेना में शामिल करने की योजना है।
स्काॅर्पिन सबमरीन
स्काॅर्पिन क्लास सबमरीन एक डीजल इलेक्ट्रिक श्रेणी की सबमरीन है जिसे फ्रांस की कंपनी डीसीएन और स्पेन की कंपनी नवांतिया ने मिलकर बनाया था और अब इसका विकास फ्रांस की डीसीएनएस कर रही है। यह एअर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन आधारित तकनीक पर काम करती है। फ्रांस के अलावा चिली, राॅयल मलेशियन नेवी, ब्राजीलियन नेवी और भारतीय नौसेना द्वारा इसका उपयोग किया जा रहा है। इसको बनाने में लगभग 500 मिलियन डाॅलर की लागत आती है। यह समुद्र में लगभग साढे़ ग्यारह सौ फीट गहरा गोता आसानी से लगा सकती है। इस श्रेणी का चार सबटाइप्स है। पहली सीएम-2000 इसका पारम्परिक डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है, दूसरा सबटाइप एएम- 2000 एआईपी, तीसरा सीए-2000 और चैथा एस-बीआर है। एस-बीआर को ब्राजीलियन नेवी इस्तेमाल कर रही है। भारत ने फ्रांस से वर्ष 2005 में इन पनडुब्बियों के सम्बन्ध में करार किया था जिसमें तकनीक हस्तातंरण भी शामिल था। फिलहाल यह प्रोजेक्ट अपनी तय सीमा से चार साल पीछे चल रहा है। इसके निर्माण की शुरूआत वर्ष 2009 में की गई।
भारतीय नौसेना की पनडुब्बियां
फिलहाल भारतीय सेना में सिंधुघोष, शिशुमार, अकुला, अरिहन्त और कलवरी वर्ग में पनडुब्बियां काम कर रही हैं। सिंधुघोष वर्ग में एस 55 से एस 65 तक नौ पनडुब्बियां काम कर रही है। भारतीय नौसना के पास इसी वर्ग में सर्वाधिक पनडुब्बियां है। रूस निर्मित यह पनडुब्बियां डीजल चालित हैं। शिशुमार वर्ग में चार पनडुब्बियां आईएनएस शिशुमार, आईएनएस संकुस, आईएनएस शल्की, आईएनएस संकुल काम कर रही हैं। इस श्रेणी की पनडुब्बियां भी डीजल चालित हैं और इनका निर्माण जर्मनी ने किया है। अकुला वर्ग में आईएनएस चक्र काम कर रही है। नाभिकीय ऊर्जा पर काम करने वाली इस पनडुब्बी को रूस से 2020 तक पट्टे पर लिया गया है। अरिहन्त श्रेणी भी परमाणु ऊर्जा पर काम करने वाली पनडुब्बियां हैं। एस1 से एस4 तक चार पनडुब्बियां काम कर रही है। इसके अलावा स्कार्पिन क्लास की पहली पनडुब्बी का आईएनएस का जलावतरण करवाया गया है।
पनडुब्बी का इतिहास
पनडुब्बी या सबमैरीन एक प्रकार का जलयान है जो लंबे समय तक पानी के अन्दर रहकर काम कर सकता है। यह एक बहुत बड़ा, मानव-सहित, आत्मनिर्भर वाटर क्राफ्ट होता है। वैसे पनडुब्बियों का सर्वाधिक उपयोग सेना में किया जाता रहा है और ये किसी भी देश की नौसेना का विशिष्ट हथियार बन गई हैं लेकिन समुद्र अध्ययन में भी इस नायाब मशीन ने बेहतरीन भूमिका निभाई है और इसकी मदद से ही कई समुद्री रहस्यों से पर्दा उठाया जा सका है। पनडुब्बी का आविष्कार जाॅन पी हाॅलैण्ड ने किया। सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में इनका जमकर प्रयोग हुआ। पहली सैनिक पनडुब्बी टर्टल बनाई गई। यह पानी के भीतर रहते हुए समस्त सैनिक कार्य करने में सक्षम थी और इसलिए इसके बनने के एक वर्ष बाद ही इसे अमेरिकी क्रान्ति में प्रयोग में लाया गया था। 1950 में परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियों ने डीजल चलित पनडुब्बियों का स्थान ले लिया। इसके बाद समुद्री जल से आक्सीजन ग्रहण करने वाली पनडुब्बियों का भी निर्माण कर लिया गया। इन दो महत्वपूर्ण आविष्कारों से पनडुब्बी निर्माण क्षेत्र में क्रांति सी आ गई। आधुनिक पनडुब्बियाँ कई सप्ताह या महिनों तक पानी के भीतर रहने में सक्षम हो गई है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी पनडुब्बियों का उपयोग हमले के लिया किया गया। इसी के बाद इनकी भूमिका बदल गई और छुप कर लड़ने वाली प्रणाली ने नौसेना को बड़े जहाजों से छोटी और बेहतरीन पनडुब्बियों की ओर ढकेल दिया तब से लेकर अब तक समुद्र की अतल गहराइयों में यह नायाब मशीने राज कर रही हैं।
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